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हिंदी दिवस पर मेरी प्रिय कविता:गुलज़ार

” स्त्री का स्वर आया— “करके तो देख! तेरे कुनबे को डायन बनके न खा गई, निपूते!” डोड़ी बैठा न रह सका। बाहर आया। “क्या करता है, क्या रांगेय राघव

उन्होंने कड़ी मेहनत करके, एक-दूसरे का समर्थन करके और एक-दूसरे को कभी हल्के में न लेकर उसकी स्मृति का सम्मान करने का वादा किया। और वे जानते थे कि जब तक वे उसकी आत्मा को जीवित रखेंगे, बुढ़िया सचमुच कभी नहीं जाएगी।

हुआ यूँ कि बचपन से ही … पूरी कहानी पढ़ें

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मधुसूदन आनंद की 'करौंदे का पेड़', 'टिड्डा' और 'मिन्नी', संजय खाती की 'पिंटी का साबुन', पंकज बिष्ट की 'बच्चे गवाह नहीं हो सकते', भैरव प्रसाद गुप्त की 'मृत्यु' दैली अद्भुत कहानी.

Galti se maine Khushbu behan ko apna lund dikha diya. Padhiye kaise hamne khel dobara shuru kiya, aur ek-doosre ko nanga karne lage.

तब मैं न तो इतनी लंबी थी, न इतनी चौड़ी। कमलाकांत वर्मा

यह क्या है? वह बोली—झलमला। मैंने फिर पूछा—इससे क्या होगा? उसने उत्तर दिया—नहीं जानते हो वाबू, आज तुम्हारी पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी

चेतना लौटने लगी। साँस में गंधक की तरह तेज़ बदबूदार और दम घुटाने वाली हवा भरी हुई थी। कोबायाशी ने महसूस किया कि बम के उस प्राण-घातक धड़ाके की गूँज अभी-भी उसके दिल में धँस रही है। भय अभी-भी उस पर छाया हुआ है। उसका दिल ज़ोर-ज़ोर से धड़क रहा है। उसे साँस अमृतलाल नागर

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इसके अलावा रघुवीर सहाय, कुँवर नारायण, श्रीकांत वर्मा ने भी भाषा, बनावट, कथावस्तु, जीवनानुभवों की इतनी अलग और अनमोल कहानियाँ लिखी हैं जिन्हें भुलाया नहीं जा सकता.

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